Sugarcane 2024 गन्ने की तीन नई किस्मों की हुई खोज, बदल सकती है किसानों की तकदीर

Sugarcane गन्ने की तीन नई किस्में विकसित

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उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के गन्ना शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने गन्ने की तीन नई किस्में विकसित की हैं. 10 साल के लंबे रिसर्च के बाद विकसित हुई इन किस्मों को लेकर वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रिसर्च से गन्ना किसानों और शुगर मिलों को बड़ी राहत मिलेगी

सूर्य की किरणों से प्राप्त ऊर्जा तथा वायु मण्डल में व्याप्त हानिकारक कार्बन डाई ऑक्साइड गैस को चीनी एवम् ऊर्जा में परिवर्तित करने की अपार क्षमता गन्ने की खेती में विद्यमान है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में गन्ना खेती से प्राप्त गन्ना व इसके विभिन्न उत्पादों जैसे-अगौला आदि का उपयोग, चीनी, गुड़, एल्कोहल आधारित विभिन्न रसायनों के उत्पादन के साथ-साथ पशुओं हेतु हरा चारा, जीवन रक्षक एन्टीबायोटिक्स, प्लाईवूड, कागज, बायोफर्टिलाइजर एवम् विद्युत उत्पादन में किया जा रहा है। ब्राजील की तरह भारत सरकार द्वारा गन्ने से इथेनॉल उत्पादित करने वाली मिलों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, फलस्वरूप वाहन व विभिन्न उद्योगों आदि से उत्सर्जित हो रही हानि कारक कार्बन डाईऑक्साइड गैस का सर्वाधिक उपयोग (कार्बन सिक्वेस्ट्रेषन) गन्ना फसल द्वारा प्रकाष संश्लेषण में किये जाने से प्रदूषणमुक्त वातावरण निर्मित करने में सहायता मिल रही है।
गन्ना भारत वर्श की व्यवसायिक व एक प्रमुख नकदी फसल है जिसका चीनी उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान है। उ0प्र0 में अधिकांशत: पुरानी व अस्वीकृत प्रजातियाँ 25.38 प्रतिशत क्षेत्रफल में अभी भी आच्छादित हैं साथ ही अगेती प्रजातियों का क्षेत्रफल तीव्र गति से बढ़ रहा है जिसका प्रभाव गन्ने की औसत उपज व चीनी परता पर स्वतः परिलक्षित है। फलस्वरूप वर्श 2012-13 में 9.26 प्रतिशत अगेती प्रजातियों के क्षेत्रफल से औसत उपज 61.6 टन/हे0 तथा चीनी परता 9.18 प्रतिशत प्राप्त हुआ था जो वर्श 2015-16 में तीव्र गति से बढ़कर अगेती प्रजातियों का क्षेंत्रफल 34.47 प्रतिशत तथा प्रदेश की औसत उपज 66.46 टन/हे0 व चीनी परता 10.61 प्रतिशत पाया गया। अतः जल्दी पकने वाली प्रजातियों से गन्ना क्षेत्रफल आच्छादित करने से औसत उपज तथा चीनी परता में सार्थक वृद्धि प्राप्त हो रही है।
राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश की औसत गन्ना उपज के साथ चीनी परता में उत्तरोत्तर वृद्धि प्राप्त करने हेतु अगेती गन्ना प्रजातियों से 50 प्रतिषत क्षेत्रफल को आच्छादित करना आवष्यक है। Sugarcane पूर्व में विकसित शीघ्र पकने वाली प्रजातियाँं अधिक गन्ना उपज के साथ बहुपेड़ीय क्षमता विद्यमान न होने के कारण किसानों में लोकप्रिय नहीें हो सकीं। उ0प्र0 गन्ना शोध परिषद द्वारा गुणवत्ता प्रजनन पर विशेष बल देने के फलस्वरूप वर्तमान में विकसित की गयी जल्दी पकने वाली प्रजाति को0शा0 08272 में बहुपेड़ीय क्षमता के साथ गन्ना उपज एवम् चीनी परता में उत्तरोत्तर वृद्धि प्रदान करने के साथ ही रोग एवम् कीटों के आपतन के प्रति रोगरोधिता का गुण होने के कारण वर्ष 2011 में इस प्रजाति को सामान्य खेती हेतु सम्पूर्ण उ0प्र0 हेतु अवमुक्त किया गया।
इस प्रकार जल्द पकने वाली प्रजातियों की शरद्कालीन बुवाई से प्राप्त उपज में बसन्तकालीन बुवाई की तुलना में लगभग 25 प्रतिशत अधिक गन्ना उत्पादन प्राप्त होने के साथ ही 0.5 प्रतिशत अधिक चीनी परता भी प्राप्त किया जा सकता है। विपरीत परिस्थितियों (जल भराव, सूखा, पाला आदि) में शरद्कालीन गन्ना उत्तम सिद्ध हुआ है। सूखे की स्थिति प्रायः मई-जून के महीने में रहती है। इस समय तक शरद्कालीन गन्ने की जड़ें काफी गहराई तक पहुँच जाती हैं और अधिक पोषक तत्वों को अवशोषित कर सूखे से ज्यादा हानि नहीं होती है। बाढ़ की स्थिति प्रायः अगस्त-सितम्बर महीने में होती है तब तक गन्ने की फसल की अत्यधिक जड़ें जकणी होती हैं जिससे बाढ़ का कुप्रभाव कम पड़ता है।

अतः शरद्कालीन बुवाई में को0शा0 08272 की खेती गहरे ट्रेन्च विधि द्वारा करने से किसान भाइयों को सवा गुना अधिक उत्पादन मिलने के साथ ही चीनी परता में वृद्धि प्राप्त होने से चीनी उत्पादन की लागत भी कम आयेगी।
Sugarcane farming
Sugarcane farming

कृषकोपयोगी गुण

को0शा0 08272 में अगेती प्रजातियों के साथ ही मध्य देर से पकने वाली प्रजातियों की तरह माह अप्रैल तक पशुओं के चारे हेतु अत्यधिक हरा अगोला बना रहने के साथ ही चीनी परता में उत्तरोत्तर वृद्धि प्राप्त होती है। उत्तर प्रदेश/उत्तर भारत की जलवायु के अनुसार व्यापक अनुकूलनशीलता विद्यमान होने के कारण प्रति गन्ना वजन के साथ-साथ चारे हेतु स्वादिष्ट व पौष्टिक अगोला माह अक्टूबर से अप्रैल तक बना रहता है। अतः किसान भाइयों को को0शा0 08272  द्वारा अधिकाधिक क्षेत्रफल में बुवाई करने से आम के आम गुठलियों के दाम अर्थात् पशुओं हेतु सुपाच्य हरा चारा (अगोला) मिलने के साथ ही प्रति गन्ना वजन में वृद्धि होते रहने के कारण गन्ना उपज में पेराई सत्र से प्रारम्भ (अक्टूबर) से ही अन्तिम सत्र तक (अप्रैल) गन्ना व चीनी उत्पादन में वृद्धि प्राप्त होती है
जमाव, ब्याँत एवम् मिल योग्य गन्नों की संख्या अच्छी रहने के साथ ही गन्ना मोटा एवम् ठोस रहता है। इस प्रकार अन्य प्रजातियों की तुलना में को0शा0 08272 प्रजाति के ब्याँत में एकरूपता पाये जाने के फलस्वरूप सभी मिल योग्य गन्ने लगभग एक समान मोटाई, लम्बाई व वजन के होते हैं। गन्ना मध्यम कड़ा होने के कारण गिरता नहीं है
प्रदेश की विभिन्न जलवायु में स्थित 14 चीनी मिलों में पोल प्रतिषत इन केन के विश्लेषणोपरांत प्राप्त मुक्त आँकड़ों से स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है कि जल्दी पकने वाली प्रजाति को0शा0 08272 में को0जे0 64 की तुलना में 3.03 प्रतिशत अधिक चीनी परता (पोल प्रतिशत इन केन) होने के साथ ही चीनी परते में उत्तरोत्तर वृद्धि प्रदान करने की आनुवंशकीय क्षमता विद्यमान है। फलस्वरूप चीनी मिलों में पेराई सत्र के प्रारम्भ (अक्टूबर 9.60 प्रतिशत पोल इन केन) से अन्त (मार्च 13.60 पोल प्रतिशत इन केन) तक उत्तरोत्तर चीनी परते में वृद्धि प्राप्त हो रही है।
 जल्द पकने वाली प्रजाति को0शा0 08272 के साथ प्रमाप को0जे0 64 का प्रदेश की विभिन्न चीनी मिलों के जोनल परीक्षण से प्राप्त दो वर्षों के औसत पोल प्रतिशत इन केन के आंकड़ों का तुलनात्मक विवरण में कोशा ०८२७२ एक बेहतर प्रजाति साबित हुई.
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