गन्ने की खेती करने वाले ध्यान दें! बुवाई के समय दूरी और खाद का ये कॉन्सेप्ट अपनाएंगे तो मिलेगी बंपर पैदावार

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जैसे के आप सभी जानते है की अगस्त का महीना गन्ने की बुवाई के लिए बिल्कुल सही माना जाता है। यही वजह है कि ज्यादातर किसान इस समय पीआर बुवाई शुरू कर देते हैं। ऐसे में किसानों के लिए सही तकनीक और रणनीति अपनाने से फसल की पैदावार में बड़ा अंतर आ सकता है। अगर गन्ने की बुवाई करते समय कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखा जाए तो फसल की पैदावार दोगुनी हो सकती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि गन्ने की बुवाई के समय दूरी और उर्वरक प्रबंधन का सही तरीके से पालन करने से उत्पादन में भारी बढ़ोतरी संभव है। माधोपुर स्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र में कार्यरत कृषि वैज्ञानिक डॉ. सतीश चंद्र नारायण ने बताया कि गन्ने की बुवाई के समय पंक्तियों के बीच की दूरी का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। आमतौर पर पंक्तियों के बीच 90 से 120 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है। यह दूरी बनाए रखने से पौधों को उचित जगह मिलती है और वे तेजी से बढ़ते हैं। 

गन्ने की बुवाई के समय करीब 8-10 सेंटीमीटर की गहराई पर बुवाई की जाती है। इससे गन्ने की जड़ें मजबूत होती हैं और पौधे को सही मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करने का मौका मिलता है। पंक्तियों के बीच सही दूरी रखने से पौधों को अधिक धूप, हवा और पोषण मिलता है, जिससे उनकी वृद्धि बेहतर होती है। साथ ही खेत में निराई-गुड़ाई और फसल की देखभाल भी आसान हो जाती है

गन्ने की खेती में करें इस खाद का उपयोग

गन्ने की खेती में जैविक खाद का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद हो सकता है। इसके साथ ही नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे रासायनिक उर्वरकों का संतुलित मात्रा में इस्तेमाल भी जरूरी है। गन्ने की बुवाई के बाद शुरुआती अवस्था में नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का इस्तेमाल पौधों की तेजी से वृद्धि में मदद करता है। इसके अलावा फास्फोरस और पोटाश का सही मात्रा में इस्तेमाल फसल की जड़ों और तनों को मजबूत बनाता है।

गन्ने की खेती जैविक खाद का क्या महत्व है

जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट और वर्मीकम्पोस्ट के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पौधों को आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व मिलते हैं। इससे मिट्टी की संरचना में सुधार होता है और गन्ने की गुणवत्ता भी बढ़ती है।

गन्ने की खेती में सिंचाई 

गन्ने की फसल को नियमित सिंचाई की ज़रूरत होती है, खास तौर पर शुष्क मौसम के दौरान। ड्रिप सिंचाई जैसी तकनीकों का इस्तेमाल पानी बचाने और पौधों की वृद्धि को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है।

समय पर निराई-गुड़ाई

खेत से खरपतवारों को समय पर हटाने से गन्ने की फसल को सही पोषक तत्व मिलते हैं और उनकी वृद्धि में बाधा नहीं आती।

रोग और कीट प्रबंधन

डॉ. सतीश के अनुसार गन्ने की फसल को बीमारियों और कीटों से बचाने के लिए जैविक और रासायनिक कीटनाशकों का संतुलित उपयोग किया जाना चाहिए। साथ ही फसल की नियमित निगरानी और प्रबंधन से नुकसान को कम किया जा सकता है।

क्या है विशेषज्ञ की राय

डॉ. सतीश का मानना ​​है कि गन्ने की खेती में इन तकनीकों का पालन करके उत्पादन में भारी वृद्धि की जा सकती है। सही दूरी, उर्वरकों का संतुलित उपयोग और समय पर देखभाल से किसान अपनी मेहनत का दोगुना परिणाम पा सकते हैं।

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