Weather and Farmer मौसम की बदलती परिस्थितियों का फसल की उपज पर क्या प्रभाव पड़ता है?
मौसम विभाग (IMD) ने अगले 2 सप्ताह तक मौसम की गतिविधियां स्थिर नहीं होने के कारण उतार चढ़ाव का दौर जारी रहने का पूर्वानुमान व्यक्त किया है. इसके मद्देनजर रबी सीजन की फसलों गेहूं, सरसों, चना और मटर के अलावा बागवानी फसलों पर भी प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.Weather and Farmer यूपी सरकार के कृषि अनुसंधान परिषद और मौसम विभाग के वैज्ञानिकों के समूह Crop Weather Watch Group ने Weather Conditions को देखते हुए किसानों के लिए परामर्श जारी किया है. इसमें यूपी के पूर्वी और पश्चिमी जोन में मौसम की गतिविधियों और इससे फसलों पर पड़ने वाले असर के बारे में किसानों को आगाह किया गया है.
ऐसा होगा मौसम का मिजाज
ग्रुप ने Farmers Advisory के मुताबिक यूपी में इस सप्ताह Western Disturbance का असर रहने के कारण अगले 3 दिनों तक मौसम का उतार चढ़ाव ज्यादा देखने को मिलेगा. यूपी में 5 फरवरी तक तेज हवाओं के साथ हल्की से मध्यम बारिश होने का पूर्वानुमान जताया है.
इस दौरान यूपी के दोनों जोन (पश्चिमी और पूर्वी) में 30 से 40 किमी प्रति घंटा की गति से तेज हवाएं चलने, कहीं मेघ गर्जन होने, वज्रपात एवं ओलावृष्टि होने की भी आशंका है. वहीं 5 फरवरी को पश्चिमी और पूर्वी जोन में कुछ स्थानों पर गरज चमक के साथ हल्की से मध्यम बारिश होने, 30 से 40 किमी प्रति घंटा की गति से तेज हवाएं चलने और बिजली की चमक के साथ मेघ गर्जन का अनुमान जताया गया है.
IMD ने 6 फरवरी के बाद मौसम की गति में स्थिरता आने की बात कही है.Weather and Farmer इसके अनुसार 9 से 15 फरवरी तक प्रदेश के दोनों जोन में प्रभावी बारिश की संभावना नगण्य होने के कारण इस अवधि में मौसम सामान्य रहेगा. तापमान के लिहाज से फरवरी के पहले सप्ताह में भावर तराई क्षेत्र, पश्चिमी मैदानी क्षेत्र और दक्षिण पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में Average Maximum Temperature 2 से 4 डिग्री से. कम रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है. इसके अलावा 9 से 15 फरवरी के दौरान बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र का Average Minimum Temperature सामान्य से 2 से 4 डिग्री से. कम रहने का अनुमान है.
किसानों को परामर्श
ग्रुप ने मौसम की असमान गतिविधियों को देखते हुए ओलावृष्टि की आशंका वाले इलाकों में बागवानी किसानों को इसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए फल एवं सब्जी की फसलों में उपलब्धता के आधार पर Anti Hail Net का इस्तेमाल करने को कहा है. साथ ही तेज हवाओं एवं ओलावृष्टि से बचने के लिए फसलों में पलवार करने को भी कहा है. खड़ी फसलों को जलभराव से बचाने के लिए खेतों का पानी निकालने का इंतजाम किसानों को करना होगा.
सरसों
ग्रुप ने बारिश, ओलावृष्टि और तेज हवाओं वाले मौसम की आशंका को देखते हुए सरसों की फसल में अल्टरनेरिया ब्राइट, तना सड़न रोग और सफेद रतुआ का प्रकोप होने की आशंका जताई है. इससे निपटने के लिए किसान डाइथेन एम 45 दवा 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से या कार्बेंडाजिम डीएम 45 दवा 2 ग्रा. प्रति लीटर का घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं. लगभग 15 दिन बाद इस दवा का फिर से छिड़काव करना होगा. इसके अलावा सरसों में सफेद रतुआ रोग होने पर मेटालेक्जिल और मैंकोजेब दवा की 1 मि.ली. प्रति लीटर मात्रा का छिड़काव कर इसे 15 दिन बाद दोहराना होगा.
सरसों में अभी भी माहू या चेंपा रोग के प्रकोप का खतरा है. इसके शुरुआती आक्रमण के समय माहू युक्त टहनियों को तोड़कर नष्ट करते रहें. अधिक प्रकोप होने पर रासायनिक उपचार के लिये डायमिथोएट 30 ईसी दवा काे 1 मिली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना पड़ेगा. इसका अधिक प्रकोप होने पर 15 दिन के बाद पुनः इसका छिड़काव करना होगा.
गेहूं
इसी प्रकार गेहूं में पत्ती धब्बा रोग होने पर Thiophanate Methyl 70%WP की 700 ग्राम मात्रा या जीरम 80%WP दवा की 2 किग्रा मात्रा 750 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करना पड़ेगा. गेहूं में गेरूई रोग के नियंत्रण हेतु प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी दवा की 500 मिली. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये.
मटर
मटर में अल्टरनेरिया, पत्ती धब्बा एवं तुलासिता रोग के नियंत्रण हेतु मैंकोजेब 75 डब्ल्यूपी की 2 किग्रा मात्रा अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी दवा की 2 किग्रा मात्रा या कॉपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 3 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
इसी प्रकार मटर में बुकनी रोग होने पर घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत 2 किग्रा अथवा ट्राईडेमेफाॅन 25 प्रतिशत डब्ल्यूपी दवा को 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
आलू
आलू में पछेती झुलसा बीमारी की रोकथाम हेतु मैंकोजेब या प्रोपीनेब या क्लोरोथैलोनिल युक्त फफूंदनाशी दवा का रोग सुग्राही किस्मों पर 0.2-0.25 प्रतिशत की दर से अर्थात 2.0 से 2.5 किग्रा दवा 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें.
ग्रुप ने इसके साथ ही किसानों काे यह भी सलाह दी है कि जिन खेतों में ये बीमारी उभर चुकी हो, उसमें किसी भी फफूंदनाशक (साइमोक्सेनिल 8 प्रतिशत, मैंकोजेब 64 प्रतिशत डब्ल्यूपी दवा की 3 किग्रा मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें.
सब्जी एवं फल
इस प्रकार के संभावित मौसम में टमाटर तथा मिर्च में झुलसा रोग हो सकता है. ऐसे में इससे बचाव के लिए हेतु मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
आम की फसल पर इस मौसम में भुनगा कीट का प्रकोप हाे सकता है. इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 30.5 प्रतिशत एससी दवा को 0.3 मिली प्रति लीटर की दर से एवं प्रोफेनोफॉस 50 प्रतिशत ईसी दवा को 01 मिली प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर इसका छिड़काव करना चाहिए.
इसके अलावा इस तरह के संभावित मौसम में आम की फसल पर खर्रा रोग का खतरा रहता है. इससे बचाव हेतु घुलनशील गंधक 2 प्रतिशत तथा 1 सप्ताह बाद डाइनो कैप अथवा ड्राइडेमार्फ 0.1 प्रतिशत दवा काे 1 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना मुफीद रहता है.